Madhu varma

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लेखनी कविता -पतंग - बालस्वरूप राही

पतंग / बालस्वरूप राही


‘ओ काट्टा’ का शोर मचा तो
कन्नु दौड़ गए छट पर
लूट पतंग बड़ी कुर्सी से
नीचे उतरे इतरा कर।

पापा जी ने कहा- ‘पतंगे
सभी लूटते बचपन में,
लेकिन पाँव न फिसले इस का
रखना ध्यान सदा मन में’।

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